Thursday, September 5, 2019

“इतिहास घायल है” [तेवरी-संग्रह] से ‘गिरीश गौरव’ की तेवरियाँ


“इतिहास घायल है” [तेवरी-संग्रह] से ‘गिरीश गौरव’ की तेवरियाँ
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गिरीश गौरव
नाम-गिरीश कुमार

जन्म-9जनवरी सन् 1963, ऊतरा ;अलीगढ़

शिक्षा- एम.ए. ;हिन्दी

सम्प्रति-अध्ययन

सम्पर्क-3319, नवीपुर कलाँ हाथरस, जिला-अलीगढ़

लेखन-कविताएं, लघुकथाएँ, कहानियाँ आदि।

रचना प्रक्रिया-
प्रदूषित वातावरण में बहुत कम क्षण ऐसे होते हैं जिनमें मैं जी पाता हूँ। मेरी हर रचना, भाषा में मेरे जीने का विकल्प है।

;एक
लोग खंडित हो रहे हैं एकता के नाम पर।
रक्तरंजित हो रहे हैं एकता के नाम पर।।

धर्म-ग्रन्धों पर लगाकर खून के धब्बे यहाँ।
लोग पण्डित हो रहे हैं एकता के नाम पर।।

कल तलक व्यक्तित्व जिनके दानवी थे, आज वे।
पुष्पमंडित हो रहे हैं एकता के नाम पर।।

प्यार के, सद्भाव के, आस्था, विश्वास के।
अर्थ कल्पित हो रहे हैं एकता के नाम पर।।

बात खुशियों की चलायी आपने कुछ इस तरह।
दर्द संचित हो रहे हैं एकता के नाम पर।।
गिरीश गौरव


;दो
जिन्दगी दुश्वार है अब राम जी।
हर कोई लाचार है अब राम जी।।

एक चिंगारी रहा पहले कभी।
आदमी अंगार है अब राम जी।।

लहलहा उट्ठेगी टूटी शाख ये?
सोचना बेकार है अब राम जी।।

मीत बनकर छल गये अपने हमें।
दोगला व्यवहार है अब राम जी।।
गिरीश गौरव



;तीन
जो हमें रास्ता दिखाते हैं।
मार्ग-दर्शन में लूट जाते हैं।।

जब दिये झौपड़ी में जलते हैं।
लोग कुछ आंधिया उठाते हैं।।

वो खुशी का शहर नहीं यारो!
हादिसे जिसमें मुस्कराते हैं।।

हम परिन्दों का बात क्या कहिए।
क्रान्ति के गीत गुनगुनाते हैं।।
गिरीश गौरव


;चार
किस तरह की घात होली में।
खून की बरसात होली में।।

हर किसी के एक पाप में।
रंग गये हैं हाथ होली में।।

भूख में हँसना सिखा गये।
टीसते हालात होली में।।
गिरीश गौरव


;पाँच
त्रासद भाव जन्म लेता है।
एक कटाव जन्म लेता है।।

मूढ़ चिकित्सक, मर्ज पुराना।
पुनि-पुनि घाव जन्म लेता है।।

चिंगारी को हवा मिले तो।
एक अलाव जन्म लेता है।।

इस निजाम के हाल देखकर।
अब तो ताव जन्म लेता है।।
गिरीश गौरव


;छः
है विषैला आजकल वातावरण।
पी गया कितना गरल वातावरण।।

मर गये आँखों के सपने जब कभी।
हो गया तब-तब तरल वातावरण।।

पेचीदगी अब रास आती है कहाँ?
खोजते हैं हम सरल वातावरण।।

दर्द को काटेंगे सारी उम्र हम।
वो गया है वो फसल वातावरण।।
गिरीश गौरव

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