“इतिहास घायल है” [तेवरी-संग्रह] से ‘योगेन्द्र
शर्मा’ की तेवरियाँ
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*योगेन्द्र शर्मा
जन्म-20 जुलाई-1950 अलीगढ़
शिक्षा-एम.ए.,बी.
एस-सी
लेखन-कविताएं, कहानियाँ, लधुकथाएं, लेख
सम्प्रति-नौकरी
सम्पर्क-3@28 सी, लक्ष्मीबाई
मार्ग अलीगढ़।
एक
कर रहा विषपान अपने देश में।
आजकल इंसान अपने देश में।।
अब अँधेरे ने शिकंजों में कसे।
धूप के दालान अपने देश में।।
फिर वही किस्सा पुराना झूठ का।
पा रहा सम्मान अपने देश में।।
न्याय-कर्ताओं ने सच्ची बात पर।
खो दिये हैं कान अपने देश में।।
*योगेन्द्र शर्मा
;दो
एक हादिसा हो जाता है, जाँच
कीजिए।
कौन दर्द को वो जाता है, जाँच
कीजिए?
जिसमें खुशहाली के सपने हैं जनता के-
चित्र कहाँ वह खो जाता है, जाँच
कीजिए?
हँसते हुए अधर को दे जाता है पीड़ा।
आँखें कौन भिगो जाता है, जाँच
कीजिए?
सुख की हर माला में आकर चुपके-चुपके।
दुःख को कौन पिरो जाता है, जाँच
कीजिए?
*योगेन्द्र शर्मा
;तीन
दुःखदर्दों में जिये जिन्दगी, ऐसा
कैसे हो सकता है।
सिर्फ जहर को पिये जिन्दगी, ऐसा
कैसे हो सकता है?
वे तो चाँद-भरी रातों में, मखमल
के गद्दों पर सोयें।
फटी रजाई सिये जिन्दगी, ऐसा
कैसे हो सकता है?
घर-घर हो प्रकाश का उत्सव, झूम
रही हो बस्ती-बस्ती।
नहीं जलाये दिये जिन्दगी, ऐसा
कैसे हो सकता है?
*योगेन्द्र शर्मा
;चार
हादिसा इतना प्रबल होता गया।
नयन का किस्सा सजल होता गया।।
तर्क की उम्मीद तब क्या कीजिए?
आदमी जब राशि-फल होता गया।।
देखिये तो जिन्दगी की त्रासदी।
प्यार भी जैसे गरल होता गया।
*योगेन्द्र शर्मा
;पाँच
सर पै बस आकाश की ही छत मिली।
जिंदगी को इस तरह राहत-मिली।।
एक सुविधा इस तरह से दी गई।
हर किसी की भावना आहत मिली।।
एक रचना और लिख दी कष्ट में।
जब कभी इतवार को मुहलत मिली।।
राह में चल भी न पायी दो कदम।
यह सियासत भी हमें जड़वत मिली।।
*योगेन्द्र शर्मा
;छः
जब कभी भी शहर में दंगा हुआ।
आदमी दिल खोलकर नंगा हुआ।।
दूसरों की रोटियों को खा गया।
इस तरह से आदमी चंगा हुआ।।
हर जगह हमको प्रदूषण ही मिला।
देश का व्यक्तित्व यूं गंगा हुआ।।
*योगेन्द्र शर्मा
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