तेवरी-संग्रह-“कबीर ज़िन्दा है” से ‘अनिल
कुमार अनल’ की तेवरियाँ
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एक
देख लो क्या हो गया है हाल अब सरकार का?
वोट से रिश्ता जुड़ा है तोड़ रिश्ता प्यार का।
देश की पतवार छोड़े खे रहे हैं नाव जो
कह रहे हैं आज हमको ध्यान है मंझधार का।
भेड़िये अब पी रहे हैं सब गरीबों का लहू
लाभ पूरा ले रहे हैं आज वे अधिकार का।
अब नहीं महफूज कोई घर यहाँ पर दोस्तो
लूटना हक हो गया है आज पहरेदार का।
जुल्म इतने ढा गया है देखिये विकलांग वर्ष
घाव ज्यों का त्यों हरा है लाठियों की मार का।
इस तरह से लद गया है कर्ज से हर आदमी
ब्याज जीवन-भर चुकाता सेठ-साहूकार का।
किस तरह की हो रही हैं साजिशें इस देश में
कल यहां पकड़ा गया है एक ट्रक तलवार का।
चंद खाकी वर्दियां और टोपियाँ इस देश की
क्या करेगी सामना इस तेवरी के वार का।
*अनिलकुमार ‘अनल’
दो
देश हुआ बरबाद आजकल
पनपा घोर विषाद आजकल।
चोर-सिपाही भाई-भाई
कौन सुने फरियाद आजकल?
पूंजीवाद प्रगति पर यारो!
ये कैसा जनवाद आजकल?
वीर ‘भगत’, ‘बिस्मल’, ‘सुभाष’ से
नहीं रहे ‘आज़ाद’ आजकल?
लाओ क्रान्ति अरे सत्ता की
खूनी है बुनियाद आजकल।
*अनिलकुमार ‘अनल’
तीन
सच है कि आजकल यूं रहने लगे है लोग।
चुपचाप हर जुल्मो-सितम सहने लगे हैं लोग।
झूठ से जब से जुड़े इन के गहन सम्बन्ध
अपने सच-ईमान को दहने लगे हैं लोग।
दर्दों-गम की जिन्दगी में क्या हुईं बरसात?
कच्ची किसी दीवार से ढहने लगे हैं लोग।
हर किसी में तैरती है नाव पापों की
एक गंगा-से हुए रहने लगे हैं लोग।
हो न हो अब क्रान्ति की फूटेगी ज्वाला देखना
मैं सुन रहा हूं आजकल कहने लगे हैं लोग।
*अनिलकुमार ‘अनल’
चार
सड़कों या चैराहों पर जब चीर-हरण होता है
किसी द्रोपदी का हमको तब स्मरण होता है।
चाहे ये इतिहास उठायें या फिर कोई और
महापुरुष के हाथों छलता हुआ करण होता है।
ऐसी मादकता जीवन में कभी नहीं आयी
जैसे लोक-गीत का कोई प्रथम चरण होता है।
भीतर-भीतर कितना काला है ये मत पूछो?
दिखने में यूं तो हर नेता श्वेत वरण होता है।
उस स्थिति में जाने कैसे लोग जिये होंगे
जिस स्थिति में शुरू हमारा रोज मरण होता है।
*अनिलकुमार ‘अनल’
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