“इतिहास घायल है” [तेवरी-संग्रह] से ‘सुरेश त्रस्त’
की तेवरियाँ
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*सुरेश ‘त्रस्त’
पूरा नाम-सुरेश चन्द्र शर्मा
जन्म-7 सितम्बर, 1947, अलीगढ़
शिक्षा-इण्टरमीडियेट
लेखन-कविताएं, कहानियाँ
आदि
सम्प्रति-चिकित्सक,
सम्पर्क-46,आवास विकास कालौनी,
सासनी गेट, अलीगढ़।
एक
धरम को बेचने वाले, वतन
भी बेच डालेंगे।
सत्य के सूर्य की चुन-चुन किरन भी बेच डालेंगे।।
जमीं पे रहने वालों की हवस आकाश तक पहुँची।
धरा की बात ही क्या, ये गगन
भी बेच डालेंगे।।
भुलाते क्रान्ति को जाते यहाँ इतिहास के पिट्ठू।
देखना ये शहीदों के कफन भी बेच डालेंगे।।
मजीरा-चिमटा वालों ने धरम व्यवसाय से जोड़ा।
ये तुलसी सूर मीरा के भजन भी बेच डालेंगे।।
अभी तक तो इन्होंने सिर्फ तारीखों को बेचा है।
सभी खुशहाल सालों के ये सन भी बेच डालेंगे।।
*सुरेश ‘त्रस्त’
;दो
कभी क्या जिन्दगी लेना धरम कोई सिखाता है?
वृथा फिर बावरे क्यों तू यहाँ गोली चलाता है।।
उजालों को न बदलो तुम अंधेरे में मेरे भाई!
भयावह दृश्य होते है, कलेजा कांप जाता है।।
निकलकर जायें अब कैसे गली के मोड़ से आगे?
किसी के हाथ का चाकू सड़क पर लपलपाता है।।
सभी की आँख पुरनम हैं, न जाने
कैसा उत्सव है?
हँसी की बात होती है, मगर
हर मन पिराता है।।
अजब हालात गुलशन के, अजब
मधुमास है यारो!
ये मौसम आजकल पत्तों की हरियाली चुराता है।।
*सुरेश ‘त्रस्त’
;तीन
देश के इतिहास को धोखा मिला।
हर सही एहसास को धोखा मिला।।
रोपने वालों ने ही काटा उसे।
पेड़ के विश्वास को धोखा मिला।।
कब पकी हैं योजनाओं की फसल?
आदमी की आस को धोखा मिला।।
बात अमृत की चली तो जहर से-
हर अधर की प्यास को धोखा मिला।।
*सुरेश ‘त्रस्त’
;चार
इस कंटीली राह का कब हल मिला।
हर तरफ बस टीसता जंगल मिला।।
रेत में अस्तित्व उसका रेत था।
जिस नदी को भी कभी मरुथल मिला।
हम नहीं बरसात के आदी रहे।
क्या करें, हर आँख
में बादल मिला।।
ये सियासत कब रही पुल की तरह?
एक तिनके का ही बस संबल मिला।।
*सुरेश ‘त्रस्त’
;पाँच
जिन्दगी पैबंदमय है।
दर्द-भीगे छंदमय है।।
द्वार पर दस्तक गमों की।
हर खुशी अब द्वंदमय है।।
बोल खुशबू में घुले हैं।
शिष्टता दुर्गन्धमय है।।
जान आफत में सभी की।
कौन अब आनन्दमय है?
*सुरेश ‘त्रस्त’
;छः
सुख की चिडि़या अब कोई, भरती
नहीं उड़ान।
दुःख बैठा है आजकल साधे तीर-कमान।।
नजर उठाकर देखिए इस बस्ती के बीच।
हर मन हैं आजकल कुंठाएं मेहमान।।
जन-सेवा के नाम पर लूट रहे हैं लोग।
कुर्सी जिनका हो गयी, धरम
और ईमान।।
मन में प्रश्न हजार हैं, औ’ शंकाएं
लाख।
कोई बतलाये हमें, क्या
होता भगवान?
सबका गहरे गर्त में चला गया व्यक्तित्व।
यारो! अपने देश में ये कैसा उत्थान?
*सुरेश ‘त्रस्त’
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