तेवरी-संग्रह-“कबीर ज़िन्दा है” से ‘रमेशराज’ की तेवरियाँ
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एक
बस्ती-बस्ती मिल रहे, अब भिन्नाये लोग।
सीने में आक्रोश की, आग छपाये लोग।
जब से सत्ता हो गयी खूनी आदमखोर
हथियारों को चल रहे हाथ उठाये लोग।
नारों वादों से यहाँ अब न छलेंगे और
खुशहाली के नाम पर घाव बसाये लोग।
मंदिर-मस्जिद में मिले, हर नगरी, हर गाँव
धर्म, न्याय, भगवान से, चोटें खाये लोग।
क्रान्ति और विद्रोह की भड़क उठेगी आग
अब तो हैं इस बात की आस लगाये लोग।
*रमेशराज
दो
रोजी-रोटी दे हमें या तो ये सरकार
वर्ना हम हो जायेंगे गुस्सैले, खूंखार।
फिर से अपने देश में ऐसे हैं हालात
खिंचनी है अब म्यान से राणा को तलवार।
और त्रासदी भूख की, अब न सहेंगे लोग
बस्ती-बस्ती हो रहा, सर पर खून सवार।
मुट्ठी-मुट्ठी तन रही नगर-नगर औ’ गांव
लोग कर रहे क्रान्ति का, अब स्वागत-सत्कार,
हर जुल्मी के हाथ को, देंगे आज मरोड़
बहुत सहे, चुप ही रहे, हमने अत्याचार।
*रमेशराज
तीन
हर एक तन पर पड़ रही महंगाई की मार
बस्ती बस्ती लोग अब रोटी को लाचार।
रोज अदालत में खड़ा रोता होरीराम
दाना-दाना खेत का लूटे साहूकार।
आज दवा के नाम पर विष देते हैं लोग
अन्तिम सांसें गिन रहा देश हुआ बीमार।
नेताओं में बढ़ रही यूं कुर्सी की भूख
देह-देह को नोचती रहती हर सरकार।
कितनी जर्जर हो गयी ये जनतंत्री नाव
कहीं डुबो ना दे इसे, माँझी है गद्दार।
*रमेशराज
चार
झूठों का होने लगा गली-गली सम्मान
ढोता भइया आजकल, हर सच्चा अपमान।
दफ्तर-दफ्तर हो गये राजाशाही ठाठ
हर कुर्सी पर पुज रहा, अब तो बेईमान।
जिनकी फितरत में रही साजिश, लूट-खसोट
वे यारो इस दौर के बन बैठे भगवान।
अब जीवन की दौड़ में, पिछड़ गये वे लोग
जिनमें बाकी है कहीं थोड़ा भी ईमान।
जब से निर्मित हो गये कुछ सरकारी बांध
बिन पानी के जल रहे खेत और इन्सान।
*रमेशराज
पांच
युग-युग से इस देश का घायल है इतिहास
रहा परकटा होंठ पर हास और परिहास।
मंदिर-मंदिर पुज रहे, दानव, चोर, डकैत
सत्य-पुजारी आज तक भोग रहा बनवास।
छीन लिया शैतान ने, सब के मन का चैन
भूख गरीबी, त्रासदी, केवल अपने पास।
सच कहने पर पी रहा विष अब भी सुकरात
और भोगता द्रोण का एकलव्य संत्रास।
झिंगुरी, दातादीन के होते अत्याचार
सिर्फ यातना सह रहा होरी बनकर दास।
*रमेशराज
छः
बातें करना कपट की, अब तुम छोड़ो यार
प्यार और सद्भाव से, हर मन जोड़ो यार।
टहनी है ये नेह की, हैं रिश्तों के फूल
प्यार जताकर अब इसे, यूं मत तोड़ो यार।
इस मटके में आजकल, खूब भरे हैं पाप
लाओ जरा गुलेल तुम, इसको फोड़ो यार।
हो जायेगी उर्वरा, मन की खुश्क जमीन
प्रेम-नीर से सींचकर, इसको गोड़ो यार।
रक्त-सने नाखून हैं इसके चारों ओर
इस निजाम के हाथ को, आज मरोड़ो यार।
*रमेशराज
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